हो मदहोश अपनी ही धुन में
जिसके खिलाफ दी दुनिया ने दुहाई है,
हमने भी उसे गलत टहरा
दुनिया से वफादारी निभाई है।
दुनिया अपनी सगी लगती
कोई खोट न उसमे पाई है,
उसे गलत करार देती
कोई घटना न सामने आई है।
वो कहती है शीशमहल टूटेगा ही
हमने भी उसकी हाँ में ही हाँ मिलाई है।
रेत का घरोंदा बहेगा ही, यह सहज है उतना ही
जितना की, हर रात के बाद एक नई सुबह आई है।
थे हम भी इस बात से भले सहमत,
चूँकि दुनिया ने यह सिखाई है।
पर एक दिन मिला हमें भी 'एक शीशमहल',
क्या खूब महल की वो परछाई है।
दुनिया ने कहा बहुत की,
हमने भी अब वही गलती दोहराई है!
पर यह बात की यह महल न टूटेगा,
सिर्फ हमें ही समझ में आई है।
जी-जाँ से संभालेंगे,
यह कसम हमने खाई है।
हुआ जो सबके साथ, वह होगा न हमारे साथ
यह हमारी खुदाई है।
हम पूर्ण करेंगे जो करने की
जेहमत हमने उठाई है।
वह महल चमक-चमकता सा,
हर बात की दे रहा गवाही है।
आज कल पर हवा में भी
एक नव तृष्णा सी आई है।
लोग है की अक्सर ही, भ्रम में हैं जिया करते
जो है ही नहीं मन ही मन वो दुनिया बसाई है।
विश्वास हमारे जीतेंगे, दुनिया गलत है
यह बात उस शीशमहल से मनवाई है।
फिर आखिर एक दिन
अनहोनी बन गयी सच्चाई है।
दुनिया की उहा-पोह, चिड -चपट के बीच में,
एक भीषण आंधी आई है।
बीत जाने, उस आंधी के बाद देखा तो
जमीं पर हमारा शीशमहल धराशाही है!
"शीशमहल बना ही टूटने के लिए है"
एक गूंज आई है।
इस टूटे हुए महल की ही खातिर
क्या हमने सर पर दुनिया उठाई है?
सब कहते थे और हुआ सब के साथ जो
हमारी किस्मत भी हमने उसी कलम से लिखवाई है।
उसी तरह बह गए सारे घरोंदे रेत के, बड़े मन से बनाए थे
अब उन्हें लहरों की बलि चढ़ाई है!
एक विश्वास था, स्वप्न था
हो कुछ अलग यह दुआ भिजवाई है।
पर वहां भी हाथ लगी
तो महज रुसवाई है।
और हुआ वही होना जो था
एक पल के जोश में, किस्मत किसने झुकाई है।
विनाश की शक्ति के आगे
दुआ भी कब काम आई है।
दुनिया कहती थी, सही थी
यह बात पुरातन से चलती आई है।
लगता हमें अवश्य है की होगा कुछ और,
और एक नई चाह उपजाई है।
पर होता अंत में वही
नहीं कोई इसकी दवाई है।
दुनिया न किसी की सगी,
न ही किसी की पाराई है
बस भ्रम से उभरे हुए
लोगों की आवाजाही है ।
जिसके खिलाफ दी दुनिया ने दुहाई है,
हमने भी उसे गलत टहरा
दुनिया से वफादारी निभाई है।
दुनिया अपनी सगी लगती
कोई खोट न उसमे पाई है,
उसे गलत करार देती
कोई घटना न सामने आई है।
वो कहती है शीशमहल टूटेगा ही
हमने भी उसकी हाँ में ही हाँ मिलाई है।
रेत का घरोंदा बहेगा ही, यह सहज है उतना ही
जितना की, हर रात के बाद एक नई सुबह आई है।
थे हम भी इस बात से भले सहमत,
चूँकि दुनिया ने यह सिखाई है।
पर एक दिन मिला हमें भी 'एक शीशमहल',
क्या खूब महल की वो परछाई है।
दुनिया ने कहा बहुत की,
हमने भी अब वही गलती दोहराई है!
पर यह बात की यह महल न टूटेगा,
सिर्फ हमें ही समझ में आई है।
जी-जाँ से संभालेंगे,
यह कसम हमने खाई है।
हुआ जो सबके साथ, वह होगा न हमारे साथ
यह हमारी खुदाई है।
हम पूर्ण करेंगे जो करने की
जेहमत हमने उठाई है।
वह महल चमक-चमकता सा,
हर बात की दे रहा गवाही है।
आज कल पर हवा में भी
एक नव तृष्णा सी आई है।
लोग है की अक्सर ही, भ्रम में हैं जिया करते
जो है ही नहीं मन ही मन वो दुनिया बसाई है।
विश्वास हमारे जीतेंगे, दुनिया गलत है
यह बात उस शीशमहल से मनवाई है।
फिर आखिर एक दिन
अनहोनी बन गयी सच्चाई है।
दुनिया की उहा-पोह, चिड -चपट के बीच में,
एक भीषण आंधी आई है।
बीत जाने, उस आंधी के बाद देखा तो
जमीं पर हमारा शीशमहल धराशाही है!
"शीशमहल बना ही टूटने के लिए है"
एक गूंज आई है।
इस टूटे हुए महल की ही खातिर
क्या हमने सर पर दुनिया उठाई है?
सब कहते थे और हुआ सब के साथ जो
हमारी किस्मत भी हमने उसी कलम से लिखवाई है।
उसी तरह बह गए सारे घरोंदे रेत के, बड़े मन से बनाए थे
अब उन्हें लहरों की बलि चढ़ाई है!
एक विश्वास था, स्वप्न था
हो कुछ अलग यह दुआ भिजवाई है।
पर वहां भी हाथ लगी
तो महज रुसवाई है।
और हुआ वही होना जो था
एक पल के जोश में, किस्मत किसने झुकाई है।
विनाश की शक्ति के आगे
दुआ भी कब काम आई है।
दुनिया कहती थी, सही थी
यह बात पुरातन से चलती आई है।
लगता हमें अवश्य है की होगा कुछ और,
और एक नई चाह उपजाई है।
पर होता अंत में वही
नहीं कोई इसकी दवाई है।
दुनिया न किसी की सगी,
न ही किसी की पाराई है
बस भ्रम से उभरे हुए
लोगों की आवाजाही है ।